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मंगलवार को भारतीय संसद में शपथ ग्रहण की सामान्य प्रक्रिया एक बड़े विवाद में बदल गई जब विपक्ष के वरिष्ठ नेता असदुद्दीन ओवैसी ने शपथ लेने के बाद “जय फिलिस्तीन” का नारा लगाया। बीजेपी नेताओं ने ओवैसी पर भारतीय संविधान का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है। इस घटना ने संसद में भारी बहस और चर्चा को जन्म दिया है। आइए जानते हैं कि ओवैसी ने क्या कहा, यह विवाद क्यों उठा, और इस पूरे मामले का आगे क्या प्रभाव हो सकता है।
ओवैसी ने वास्तव में क्या कहा? ओवैसी ने 542 अन्य विधायकों के साथ सांसद के रूप में शपथ ली। उन्होंने उर्दू में शपथ ली: “मैं, असदुद्दीन ओवैसी, जो लोकसभा सदस्य के रूप में चुना गया हूं, अल्लाह के नाम पर शपथ लेता हूं कि मैं भारतीय संविधान के प्रति वफादार रहूंगा। मैं भारत की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखूंगा और अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करूंगा।” इसके बाद उन्होंने “जय भीम, जय मिम, जय तेलंगाना, जय फिलिस्तीन” का नारा लगाया।
“जय भीम” दलित नेता भीमराव अंबेडकर के प्रति सम्मान का नारा है। “मिम” उर्दू का अक्षर है, जो उनकी पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) का संदर्भ है। तेलंगाना ओवैसी का राज्य है और फिलिस्तीन का उर्दू और हिंदी में मतलब फिलिस्तीन है।
ओवैसी कौन हैं? असदुद्दीन ओवैसी 2004 से तेलंगाना के हैदराबाद से पांच बार के लोकसभा सांसद रहे हैं। वह एक राजनीतिक परिवार से आते हैं और उनके पिता सलाहुद्दीन ओवैसी 1984 से 2004 तक छह बार हैदराबाद के सांसद रहे। ओवैसी 2008 से एआईएमआईएम के अध्यक्ष भी हैं। उनकी पार्टी मुस्लिम अधिकारों, सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों और दलित अधिकारों का समर्थन करती है। ओवैसी अपने तीखे भाषणों के लिए जाने जाते हैं।
इस चुनाव में, एआईएमआईएम न तो बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा थी, न ही कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन इंडिया का हिस्सा थी।
क्या भारतीय सांसद को दंडित किया जा सकता है? फिलिस्तीन का उल्लेख करके और गाज़ा पर इजराइल के युद्ध का संदर्भ देकर, ओवैसी ने आलोचना और आरोपों का सामना किया है कि उन्होंने फिलिस्तीन के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त की है। बीजेपी के सदस्यों ने आरोप लगाया कि ओवैसी ने भारतीय संविधान का उल्लंघन किया है। बीजेपी के आईटी प्रमुख, अमित मालवीय ने एक्स पर पोस्ट किया कि असदुद्दीन ओवैसी को लोकसभा सदस्यता से अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
हालांकि, अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि ओवैसी ने कोई नियम नहीं तोड़ा है, भले ही उन्होंने परंपरा से विचलित होकर नारा लगाया हो।
बीजेपी के राधा मोहन सिंह ने भी कहा कि शपथ के बाद लगाए गए नारे रिकॉर्ड में नहीं जाएंगे। हालांकि, संसदीय मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि वह इस मुद्दे पर नियमों की समीक्षा करेंगे।
क्या अन्य सांसदों ने कुछ विवादास्पद कहा? बीजेपी के छात्र पाल सिंह गंगवार ने अपनी शपथ के अंत में “जय हिंदू राष्ट्र” का नारा लगाया, जिससे विपक्ष के सांसदों ने विरोध किया। बीजेपी के अतुल गर्ग ने अपनी शपथ के बाद “नरेंद्र मोदी जिंदाबाद” कहा। विपक्ष के विरोध के बाद, उन्होंने “डॉ. हेडगेवार जिंदाबाद” कहा।
क्या कुछ सांसदों ने संविधान की प्रति लेकर शपथ ली? कांग्रेस नेता राहुल गांधी और अखिलेश यादव सहित कई विपक्षी विधायकों ने संविधान की प्रति लेकर शपथ ली। इस पर मोदी और अन्य बीजेपी नेताओं ने कांग्रेस पर पाखंड का आरोप लगाया। मंगलवार को 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल की घोषणा की सालगिरह भी थी।
विशेषज्ञों का कहना है कि मंगलवार की शपथ ग्रहण समारोह से उत्पन्न बहसें भारत के सामने आने वाली जटिल वास्तविकता को दर्शाती हैं।
विश्लेषणात्मक निष्कर्ष:
असदुद्दीन ओवैसी द्वारा “जय फिलिस्तीन” का नारा लगाना भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा सकता है। यह घटना न केवल शपथ ग्रहण की परंपरागत प्रक्रिया से भिन्न थी, बल्कि यह भारतीय संसद में धार्मिक और राजनीतिक विचारधाराओं के टकराव को भी उजागर करती है। ओवैसी का यह कदम उनके समर्थकों के बीच उनके प्रभाव को मजबूत करने के लिए एक रणनीतिक प्रयास हो सकता है, विशेषकर मुस्लिम समुदाय के बीच।
बीजेपी की तीखी प्रतिक्रिया और ओवैसी पर संविधान के उल्लंघन का आरोप लगाना, इस बात को दर्शाता है कि सत्तारूढ़ पार्टी इस मुद्दे को कितनी गंभीरता से ले रही है। हालांकि, विशेषज्ञों का यह मानना कि ओवैसी ने कोई नियम नहीं तोड़ा, इस बहस को और भी जटिल बना देता है।
यह घटना इस बात की ओर इशारा करती है कि भारत में राजनीति केवल चुनावी मुद्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक और धार्मिक मुद्दों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। इस विवाद ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय राजनीति में विचारधाराओं का संघर्ष जारी है और यह भविष्य में भी देखने को मिलेगा। ओवैसी के इस कदम का दीर्घकालिक प्रभाव क्या होगा, यह देखना दिलचस्प होगा, लेकिन फिलहाल यह निश्चित है कि इसने राजनीतिक और सामाजिक चर्चा को नए सिरे से जीवंत कर दिया है।